मंगलवार, 21 जून 2016

चक्रवर्ती विजयराघवाचारीअर


चक्रवर्ती विजयराघवाचारीअर का जन्म  18 जून 1852 को एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ. उनके पिता सद्गोपारचारीअर एक पुजारी थे और विजय को  प्रारंभिक शिक्षा के अंतर्गत संस्कृत भाषा और वेदों का अध्ययन कराया गया. उनका अंग्रेजी शिक्षण 12  वर्ष की आयु में प्रारंभ हुआ, और 1870 में मद्रास प्रेसीडेंसी में दूसरे रैंक के साथ हाई स्कूल की परीक्षा पास की.  1875 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से स्नातक उपाधि अर्जित कर  वे वहीं लेक्चरर की पोस्ट पर नियुक्त हुए. 1881 में बिना कोई क्लास अटेंड किए उन्होंने लॉ परीक्षा पास की और प्लीडर बन गए.
1882 के सेलम दंगों के बाद से चक्रवर्ती विजयराघवाचारीअर दक्षिण भारत के शेर कहलाने लगे. वे न केवल झूठे इल्जामों से बरी हुए, बल्कि सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया से 100 रुपए का खामियाजा भी हासिल किया और म्युनिसिपल काउंसिल में नियुक्ति भी. दंगों के सिलसिले में काला पानी की सज़ा काटते भारतीयों को भी निर्दोष साबित किया.
1885 में जब कांग्रेस की स्थापना हुई तो अपने मित्र ए ओ ह्यूम के साथ विजयराघवाचारीअर भी पहले अधिवेशन में पहुंचे. कांग्रेस की विचारधारा तय करने में इनका बड़ा योगदान था, और 1887 में कांग्रेस संविधान बनाने वाली कमेटी के मुख्य सदस्यों में वे भी थे. 1899 से कांग्रेस प्रोपेगंडा कमेटी के सदस्य बन इन्होंने कांग्रेस को जन से जोड़ने का सफल काम किया.
1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में विजयराघवाचारीअर को प्रेसिडेंट चुना गया. इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की मांग रखी, और महात्मा गांधी के सुझाए असहयोग आंदोलन  के माध्यम से इसे पाने का फैसला किया. तभी से समाज सुधार की ओर उनका झुकाव कांग्रेस में भी दिखने लगा. 1931 में वे हिंदू महासभा के प्रेसिडेंट चुने गए और स्वामी शारदानंद के साथ  एंटी-अनटचएबिलिटी लीग का काम आगे बढाया. संपत्ति में बेटियों को हिस्सा देने की मांग भी विजयराघवाचारीअर ने उठाई. साइमन कमीशन के बाद विजयराघवाचारीअर की अंतिम उम्मीद लीग ऑफ़ नेशंस से थी. उनसे हस्तक्षेप की अपील उनका आखिरी राजनैतिक कदम था.
विजयराघवाचारीअर के मित्र केवल कांग्रेस में ही नहीं, बल्कि अंग्रेजों में भी थे – वाइसराय और गवर्नर्स, जैसे लार्ड रिपन लार्ड कर्जनलार्ड पेंटलैंड, लार्ड और लेडी हार्डिंग उनके अच्छे मित्र थे.  एर्द्ली नॉर्टन ने सेलम दंगों के बाद उनकी पैरवी कर उन्हें कालापानी से बचाया था.


11 अप्रैल, 1944 में अपनी मृत्यु तक भी विजयराघवाचारीअर कांग्रेस का मार्गदर्शन कर रहे थे – मद्रास जर्नल्स में लेखों के ज़रिये. कांग्रेस से अलग होने के बाद भी वे गांधी के विचार जन-जन तक पहुंचाने में लगे रहे. आज भी भारत इस शेर को याद करता है, और भारतीय पार्लियामेंट की दीवार पर उनकी तस्वीर सजी है.  
- पूर्णिमा शर्मा