रमजान महीने को नेकियों का महीना कहा गया है। जो आम दिनों में अल्लाह की इबादत नहीं कर पाता है वह भी रमजान का पूरा महीना इबादत में गुजार देता है। इस महीने को सब्र का महीना भी कहा जाता है। माना जाता है कि सब्र के बदले जन्नत मिलती है। यह महीना समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों के साथ हमदर्दी करना सिखाता है। यह भी माना जाता है कि इस महीने में रोजा रखने वाले को इफ्तार कराने वाले के भी सभी गुनाह माफ हो जाते हैं।
रमजान महीने के पहले दिन को बड़ा महत्व दिया जाता है। पहला रोजा सभी मुसलमानों को रखना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन अल्लाह दोजख के रास्ते बन्द कर जन्नत के रास्ते खोलता है। सभी मुसलमानों को रमजान के महीने का इन्तजार रहता है। चांद देखकर रोजा रखा जाता है। पहले रोजे के लिए तैयारी अधिक की जाती है। महीने का पहला रोजा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन से ही हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं जिन्हें हम पढ़ते और सुनते रहते हैं और जिन पर अमल करना हमारा फर्ज है। मोहताज और गरीब लोगों की हमें मदद करनी चाहिए। नेकियों का यह महीना नेकियों के लिए ही होता है। दूसरों की मदद करने, अच्छा सोचने और अच्छा करने वाले से अल्लाह न सिर्फ खुश ही होता है बल्कि नेकी करने वाले शख्स को बरकत और कामयाबी जैसे तमाम तोहफे भी बख्शता है।
न्तु सोचने और समझने वाली बात यह है कि क्या हम वाकई नेकी वाले काम करते हैं. यदि हाँ तो, हमें अल्लाह की भरपूर नेमतें मिलती हैं और यदि नहीं तो हमें यह भी सोच लेना चाहिए कि हमारे साथ क्या होना चाहिए. हम किसी को भी धोखा दे सकते हैं मगर अल्लाह को नहीं. वह हमारी एक एक हरकत पर नजर रखता है और हर हरकत का हिसाब भी रखता है। रमजान के पहले ही दिन से शैतान भी हमें तंग करना छोड़ देता है। यह इसलिए होता है कि अल्लाह शैतान को बांध देता है, ताकि नेक बन्दे नेकी करने में कामयाब हो सकें और शैतान उन्हें उनकी सही राह से भटका न सके।
कहा जाता है कि अगर इस महीने में हम अपनी जरूरतों और ख्वाहिशों को कुछ कम कर लें और यही रकम जरूरतमंदों को दें तो यह हमारे लिए मिलने वाले बेहतर फल का कारण होगा। क्योंकि इस महीने में की गई एक नेकी का फल कई गुना बढ़ाकर अल्लाह की तरफ से अता होता है।
मोहम्मद साहब तो हमेशा ही दूसरे लोगों की मदद करते रहे। उन्होंने अपने जानने में किसी को भूखा नहीं सोने दिया और अल्लाह से यही दुआ की कि कोई दुखी न रहे। लेकिन उन्होंने भी रमजान के महीने में अपनी नेकियों को बढाया। इस महीने को बेहद पवित्र और उपकारी मानते हुए ही हजरत मोहम्मद साहब भी पूरे महीने रोजे रखते थे और घूम घूमकर देखते थे कि उनके आसपास कोई परेशान तो नहीं है। हजरत साहब के द्वारा किए गए कार्यों को हदीस के रूप में जाना जाता है और रमजान के महीने में हदीसों की संख्या अधिक है। इसलिए आम मुसलमान को भी हदीसों को ध्यान में रखते हुए रमजान के पवित्र महीने में जितनी भी हो सके उतनी नेकी करनी चाहिए।
इसलिए रमजान के पहले रोजे से ही नेकियों की फेहरिश्त बना कर कार्य करना चाहिए और पहले दिन की तरह हर एक रोजा रखना चाहिए। यही बात उस शख्स पर भी लागू होती है जो अपने जीवन का पहला रोजा रखता है। हर आदमी को अपना पूरा जीवन ही रमजान मानकर जीना चाहिए। फिर देखिए, अल्लाह उस शख्स को कितने तोहफे अता करता है।
-पूर्णिमा शर्मा