मंगलवार, 1 मार्च 2016

वन्य प्राणियों से प्रेमपूर्ण व्यवहार


हम मनुष्य हैं. हमने लम्बी साधना करके मनुष्यता का विकास किया है. यह मनुष्यता ही हमें जगत के अन्य समस्त प्राणियों से श्रेष्ठ बनाती है. इसका आधार वे सुनहरे सिद्धांत हैं जिन्हें हम मानव-मूल्य और जीवन-मूल्य कहते हैं. इन उत्तम मूल्यों में जीवन को सुंदर और धरती को सुरक्षित रखने के सिद्धांत तो निहित हैं ही, मानवेतर सृष्टि के साथ हमारे व्यवहार के सूत्र भी छिपे हैं. जब कोई भारतीय कवि यह कहता है कि यह मेरा है और वह पराया है, ऐसा भेदभाव करने वाले लोग ओछे मन के लोग होते हैं क्योंकि खुले दिल वाले लोगों के लिए तो यह सारी धरती अपना ही कुटुंब है; तो वह यह संदेश दे रहा होता है कि संपूर्ण जगत के मानवों ही नहीं, समस्त प्राणियों और प्राकृतिक संपदा के प्रति भी वैसा ही प्रेमपूर्ण व्यवहार करो जैसा अपने रक्त-सम्बन्धियों से करते हो.

यहीं से शुरूआत होती है उस व्यापक करुणा भाव की जिसकी जड़ में समस्त सृष्टि के प्रति अहिंसक व्यवहार का उच्च विचार निहित है. वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव इस जगत को तपोवन जैसा शांत बना सकता है. आपने बुद्ध और महावीर की वे कथाएँ अवश्य सुनी होंगी जिनमें बताया जाता है कि उनके तप के प्रभाव से भीषण नाग और भयानक शेर भी पालतू पशुओं की तरह विनम्र हो गए थे. ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं कि किसी गुरुकुल में स्वाभाविक वैर भुलाकर तमाम वन्य प्राणी एक साथ निवास करते थे. मेरे मतानुसार तो ये केवल कथाएँ नहीं हैं बल्कि इस सत्य के प्रमाण हैं कि प्रेम और करुना से भरे व्यवहार द्वारा वन्य प्राणी आश्वस्त होकर अपने हिंसक स्वभाव को भी बदल सकते हैं. प्रेम की इस शक्ति को आप उस कहानी में भी पहचान सकते हैं ण एक व्यक्ति शेर के पंजे से काँटा निकाल कर उसे पीड़ामुक्त करता है और शेर आजीवन उसका अहसानमंद रहते हुए उसकी रक्षा करता है – भूख से बिलबिलाने पर भी उसके ऊपर नहीं झपटता. 

इन सब बातों से यह पता चलता है कि मानवों और वन्य प्राणियों में कोई नैसर्गिक वैर-भाव नहीं है. परंतु एक दूसरे के स्वभाव और मनोभाव से परिचित न होने के कारण दोनों एक दूसरे के बारे में आशंकित रहते हैं. आशंका भय को जन्म देती है और भय शत्रुता का जनक है. शत्रुता हिंसा की माँ है अतः मनुष्य और पशु दोनों ही एक दूसरे के प्रति घातक बन जाते हैं. भारतीय ऋषियों ने इस स्वाभाविक दुर्बलता को पहचाना था. इसीलिए उन्होंने यह कामना की थी कि समस्त पृथ्वी, पर्यावरण, प्रकृति और प्राणी शांति का अनुभव करें. यह शांति ही आज भी हमारी बड़ी ज़रुरत है. हमें इस पृथ्वी की वैविध्यपूर्ण जीव-संपदा को बचाए रखना है तो वन्य प्राणियों के साथ भी मैत्री और प्रेम का व्यवहार सीखना होगा! 

- डॉ. पूर्णिमा शर्मा , 208-ए, सिद्धार्थ अपार्टमेंट्स, गणेश नगर, रामंतापुर, हैदराबाद – 500013. मोबाइल – 08297498775.