बुधवार, 20 जनवरी 2016

नन्हीं लाल चुन्नी – 2

नन्हीं लाल चुन्नी!
यह कहाँ आ गईं
बिटिया तुम?
नानी के लिए फूल लेने आई थी न?
पर अब इस बगिया में
फूल नहीं खिलते
अब तो यहाँ
हवा भी हाथ में खंजर लेकर चलती है,
नई कोपलें
मातम में लिपटी रहती हैं,
फूलों से
खून टपकता है.

वह जो देख रही हो ण तुम
फुलवारी के बीचों-बीच;
समाधि है तुम्हारी छोटी बहन की.
वह भी आई थी
फूल चुनने
और मारी गई थी
घात लगाए बैठे
भेडियों से लड़ते हुए.

लौट जाओ, नन्ही लाल चुन्नी!
इससे पहले कि
भेडिए तुम पर भी टूट पड़ें.

नहीं, अब हमारे मुल्क में
न लकडहारे होते हैं;
और न कुल्हाड़ियाँ!

            - पूर्णिमा शर्मा