शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

ध्यान



मनुष्य की विशेषता का आधार है उसका मन. मन का स्वभाव है चंचलता. आपने अनुभव किया होगा कि मन तनिक देर भी एक स्थान पर नहीं टिकता. यहाँ तक कि जब कभी आप आध्यात्मिक भाव से अपने इष्ट का चिंतन-मनन करने बैठते हैं, यह चंचल मन तब भी चैन से बैठता नहीं है. जैसा कि संत कबीरदास कह गए हैं, हमारे हाथ में माला घूमती रहती है, हमारे मुंह में जीभ घूमती रहती है लेकिन मन इन दोनों का साथ नहीं देता बल्कि सारे जगत में विचरण करता रहता है और इस प्रकार इष्ट का स्मरण भी मात्र यांत्रिक क्रिया बन कर रह जाता है; मानसिक क्रिया नहीं बन पाता – ‘माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुंह माहिं / मनुआ तो चहुँ दिसि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं.’ यही कारण है कि महात्मा बुद्ध ने अपनी साधना पद्धति में मन की चंचलता पर नियंत्रण के लिए सम्यक ध्यान का प्रावधान किया.


आपने यह भी अनुभव किया होगा कि चौबीसों घंटे हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ जो ज्ञान अर्जित करती रहती हैं तथा जो कर्म करती रहती हैं, वह सब स्वतः चलता रहता है और हमें यह भान तक नहीं होता कि हम दिन भर में क्या-क्या देखते-सुनते-सूंघते-छूते-चखते रहते हैं. यदि हम इन सबके प्रति जागरूक हो जाएं तो स्वतः ही मन की चंचलता दूर हो जाएगी और वह प्रस्तुत विषय पर एकाग्र होने लगेगा. मन की अस्थिरता के दूर होने और किसी एक स्थान पर एकाग्र होने का ही नाम ध्यान है. आप आज ही से एक प्रयोग करके देखें. आप जब भी कुछ खाएं या कुछ पियें, उस समय प्रयास करें कि आपका ध्यान पूरी तरह खाने या पीने की क्रिया पर हो. एक-एक कौर या एक-एक घूँट पर ध्यान देंगे तो आप उस खाद्य या पेय पदार्थ का सम्यक रूप में सेवन कर सकेंगे – बस सावधानी इतनी सी रखनी है कि उस समय कुछ भी सोचना नहीं है. इसी प्रकार दूसरा प्रयोग यह करके देखें कि कमरे में टंगी हुई दीवार-घडी की टिक-टिक को सम्यक रूप से सुनने का प्रयत्न करें – कुछ इस तरह कि कुछ भी सोचें नहीं और टिक की एक भी ध्वनि आपके अनुभव में आने से छूटे नहीं. यदि आपने डेढ़ मिनट तक भी ऐसा कर लिया तो आप ध्यान की दिशा में अग्रसर जो जाएंगे. यही कारण है कि ध्यान लगाने के लिए साधक को यह परामर्श दिया जाता है कि आप कुछ भी सोचे बिना अपनी आती-जाती साँसों को देखने का अभ्यास कीजिए. यदि आप ऐसा कर पाते हैं तो समझिए कि आप ध्यान के सही मार्ग पर हैं. इसके लिए हठ करना या जिद करना आवश्यक नहीं बल्कि मन को एकाग्र करना भर काफी है. 


तो फिर सोचना क्या है? मन के घोड़े की लगाम अपने हाथ में लीजिए और हर कर्म को जागरूकता के साथ कीजिए तो आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन होने आरंभ हो जाएंगे. यही ध्यान का प्रत्यक्ष लाभ है.
- पूर्णिमा शर्मा