गुरुवार, 28 जनवरी 2010

बेटियाँ




जब खुश होती हैं बेटियाँ
तो आँगन चहकने लगता है .
रंगोली सजती है दरवाजे पर .
सारा का सारा आसमान
भर उठता है बन्दनवारों से .
तुलसी रोज़ होती है एक हाथ लम्बी .
नीम में पड़ते हैं झूले .
आम के बौर में छिप कर
कूकती है कोयल .
और चौक में बिखर - बिखर जाते हैं
चम्पा - चमेली के फूल .
जब खुश होती हैं बेटियाँ
तो खुश होता है
सारा घर - संसार .
पर जब दुखी होती हैं बेटियाँ
तो कितनी अकेली होती हैं वे !
घुट - घुट कर
सुबक - सुबक कर रोती हैं वे !
उनके दुःख कोई नहीं जानता -
न घर , न संसार !!


-पूर्णिमा  शर्मा