गुरुवार, 28 जनवरी 2010

लड़के



सपनों को सहेजते हैं
अपनी आंखों में
अपनी उम्र का हिसाब रखते हुए लड़के .
खिलखिलाती हैं जब लड़कियाँ,
अपनी मुस्कान को दबाते हैं लड़के.
आईने के सामने घंटों
बतियाती हैं जब बहनें,
कभी रीझकर तो कभी खीझकर
मुक्का तानते हैं लड़के .

और जब किसी दिन
तिरछी चितवन से
देख लेती है कोई लड़की ,
अचानक कवि हो उठते हैं लड़के !
(शायद इसीलिए दुनिया में इतने सारे कवि हैं !)

-पूर्णिमा  शर्मा