लड़कियाँ कविताएँ हैं ;
चाहे - अचाहे आ जाती हैं
मन के आँगन में .
चाहे - अचाहे आ जाती हैं
मन के आँगन में .
कभी हँसाती और गुदगुदाती हैं .
कभी रूठ जाती हैं ,
कभी रुलाती हैं .
कभी रूठ जाती हैं ,
कभी रुलाती हैं .
कविताओं को कुछ भी छिपाना नहीं आता .
लड़कियाँ भी कहाँ कुछ छिपाना जानती हैं ?
लड़कियाँ भी कहाँ कुछ छिपाना जानती हैं ?
कविताएँ सहज हैं ,सच्ची हैं, सुंदर हैं .
लड़कियाँ भी कितनी सहज हैं, सच्ची हैं, सुंदर हैं !
लड़कियाँ भी कितनी सहज हैं, सच्ची हैं, सुंदर हैं !
दुनिया जाने कैसी होती
अगर लड़कियाँ न होतीं ;
अगर कविताएँ न होतीं !!
-पूर्णिमा शर्मा
अगर लड़कियाँ न होतीं ;
अगर कविताएँ न होतीं !!
-पूर्णिमा शर्मा