सहयात्रा
बरसों
पहले
मैंने
धरा था पहला पाँव
अग्नि
की लीक पर
और
तुमने जला ली थीं
अपनी
हथेलियाँ
मेरे
तलवे बचाने को.
तबसे
मैं चलती आई हूँ
तुम्हारी
हथलियों पर
बरसों-बरस,
मीलों-मील.
बुढ़ाने
लगी हैं
तुम्हारी
हथेलियाँ;
काँपते
हैं मेरे पैर.
और तुम
कहते हो –
अभी तो
मीलों
जाना है!
- पूर्णिमा शर्मा