हम
सोये थे बेखबर
पड़ोसी
ने गिरा दी दोनों बाजुओं की दीवारें;
और
खुद बुला लाया पंचों को .
हम
चुप हो गए,
पंचों
को परमेश्वर मानकर
फिर
सो गए .
पड़ोसी
पूरा शैतान था
हर
रात चुपके-चुपके
कभी
नींद में तेज़ाब डालता,
कभी
दीवारों में सेंध लगाता
और
कभी कंगूरों पर पत्थर
मारकर
भाग जाता .
हमें
गुस्सा आता .
हम
आग बबूला होते .
हम
बाँहें चढ़ा लेते .
वह
फिर पंचों को बुला लाता .
पंच
आते; निरीक्षण करते .
सहानुभूति
जताते
और
हमें संयम का उपदेश देकर
चले
जाते .
हम
अच्छे बच्चे की तरह
सद्भावना
में डूबने-उतराने लगते.
पर
इस बार तो हद हो गई .
हम
बैठे थे सत्यनारायण की पूजा में
और
पड़ोसी अपने कीचड के पाँव लेकर
हथौड़े
थामे घुस आया पूजागृह में .
पंच
अब भी हमें संयम के
उपदेश
दे रहे हैं !
- पूर्णिमा शर्मा