शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

शैतान पड़ोसी

हम सोये थे बेखबर
पड़ोसी ने गिरा दी दोनों बाजुओं की दीवारें;
और खुद बुला लाया पंचों को .
हम चुप हो गए,
पंचों को परमेश्वर मानकर
फिर सो गए .
                     
पड़ोसी पूरा शैतान था
हर रात चुपके-चुपके
कभी नींद में तेज़ाब डालता,
कभी दीवारों में सेंध लगाता
और कभी कंगूरों पर पत्थर
मारकर भाग जाता .

हमें गुस्सा आता .
हम आग बबूला होते .
हम बाँहें चढ़ा लेते .
वह फिर पंचों को बुला लाता .

पंच आते; निरीक्षण करते .
सहानुभूति जताते
और हमें संयम का उपदेश देकर
चले जाते .
हम अच्छे बच्चे की तरह
सद्भावना में डूबने-उतराने लगते.

पर इस बार तो हद हो गई .
हम बैठे थे सत्यनारायण की पूजा में
और पड़ोसी अपने कीचड के पाँव लेकर
हथौड़े थामे घुस आया पूजागृह में .

पंच अब भी हमें संयम के

उपदेश दे रहे हैं !

- पूर्णिमा शर्मा