रविवार, 18 नवंबर 2012

छाया सीता

अवधपुरी के राजमहल के
कलशों पर जलती
दीपशिखाओं के बीच
खड़ी एक छाया  सोचती है-
क्या कीर्ति और यश की
इसी दीपमाला को पाने के लिए
ली गई थी वहाँ लंका में
स्त्री जाति के  प्रेम और विश्वास की
अग्नि-परीक्षा?

और जलने लगते हैं
धरती की बेटी के तन-बदन में
सूरज, चाँद ,तारे
और अनगिनत दिये

अग्नि  में तप कर
कुन्दन हो गई थी सीता
लेकिन
पिघल कर बह गया था पति राम

कैसी दीपावली,  हे राजा राम!
तुम अकेले ही लौटे थे लंका से.

आज भी राम का नाम इतिहास में है
पर सीता उसी दिन से वनवास में है.

-पूर्णिमा शर्मा