रविवार, 17 जून 2012

वसंत आ गया

वसंत आ गया ,
आ गईं बहुत सी यादें
आम के पेड पर बौर सी
बौराती हुईं.
जीवन की विजय की घोषणा करती हुई
नई कोंपलें इतरा उठीं.

राग के रंग में
उमंगें तैरने लगीं
पतंग बनकर
आसमान छूने की खातिर
हवा में.
धरती ने सरसों के फूलों से
सजा लिया आँगन
ऋतुओं के राजा की अगवानी में.
इतना कुछ हुआ
मन की राजधानी में .
........
लेकिन केवल यादों में.
........
वसंत
अब याद करने की ही तो चीज़ है
धूल, धुएँ और धिक्कार से भरे
किसी भी महानगर में.

काश,
मैं अपने गाँव कव्व अमराई से
थोडा सा वसंत
अपनी मुट्ठियों में भर लाती!

-पूर्णिमा शर्मा 

(यह कविता 15 फरवरी 2002  को लिखी गई थी.)