शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

तपस्या


किसी कार्य की सिद्धि के लिए अपनी समस्त शक्ति से कठोर साधना करना तपस्या है. आपने सुना होगा कि बहुत से महात्मा किसी भी प्रकार के ऋतु परिवर्तन की परवाह किए बिना इस प्रकार की साधना किया करते हैं जो सामान्य जन के लिए अकल्पनीय है. उदाहरण के लिए वे जनवरी के महीने में बर्फीले जल-प्रवाह में निर्वस्त्र खड़े रहकर जप करते रहते हैं या मई-जून के भीषण गरमी के दिनों में गरम रेतीले मैदान में भरी दुपहरी अपने चारों ओर आग जलाकर पूजा में मग्न रहते हैं. इस तरह वे अपने तन-मन को विपरीत परिस्थितियों में अविचलित रखने और सहन शक्ति को बढाने का अभ्यास किया करते हैं. यही उनकी तपस्या है. लेकिन इस प्रकार प्रकृति के विरुद्ध हठ करना या जिद करना तपस्या का एक रूप भर है. वास्तव में तो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठोर श्रम करना ही तपस्या है.

ध्यान रहे कि केवल आध्यात्मिक लक्ष्य की पूर्ति की साधना को ही तपस्या मानना भूल होगी. किसान जब फसल उगाने की साधना में व्यस्त होता है या मजदूर जब कारखाने में जी-तोड़ मेहनत कर रहा होता है, तो वास्तव में वह किसानी और मजदूरी भर नहीं, बल्कि तपस्या कर रहा होता है. विपरीत परिस्थिति में भी अविचल रहना और दृढ़ता पूर्वक अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहना ही वास्तविक उपासना और तपस्या है. 

आपको याद होगा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोकमान्य तिलक ने हमारे देश को ‘स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ जैसा मंत्र देकर देशवासियों का आह्वान किया था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लक्ष्य के उपलब्ध होने तक विदेशी शासन के विरुद्ध संघर्ष करते रहें. इससे पहले स्वामी विवेकानंद ने जन –जागरण की पुकार लगाई थी और उपनिषद के हवाले से कहा था कि हे भारत के नागरिको! उठो, जागो और तब तक संघर्षरत रहो जब तक अभीष्ट की प्राप्ति न हो जाए. सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे भारतमाता के सपूतों ने गुलामी की जंजीरें काट डालने के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी. महात्मा गांधी ने जब ‘करो या मरो’ का नारा लगाया तो भारतवासी तमाम तरह के अत्याचारों को सहते हुए भी अविचलित रहकर अहिंसक संघर्ष में डट गए. हमारा मानना है कि ये समस्त देशभक्त वास्तव में सच्चे तपस्वी थे और आज़ादी के लिए की गयी इनकी कठोर साधना ही आधुनिक युग के सन्दर्भ में सच्ची तपस्या थी.

तो आइए, हम भी अपने-अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अविचलित साधना के मार्ग पर अग्रसर हों – यही कर्मशील व्यक्ति के लिए वास्तविक तपस्या है!

- पूर्णिमा शर्मा